चुनौतियों के संग दिल्ली में आतिशी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और दिल्ली की आठवीं, साथ ही तीसरी महिला मुख्यमंत्री बन गईं‘ साथ ही आतिशी’ पारी का आरंभ?

दिल्ली की राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ चुका है, जहां आतिशी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और दिल्ली की आठवीं, साथ ही तीसरी महिला मुख्यमंत्री बन गईं। यह कदम दिल्ली की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ की तरह देखा जा रहा है, जहां पार्टी ने न केवल अपनी आंतरिक स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया है, बल्कि राजनीतिक रूप से एक सधा हुआ दांव भी खेला है।

आतिशी का मुख्यमंत्री बनना अचानक आया फैसला नहीं था, बल्कि यह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का सोचा-समझा निर्णय है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कई मौकों पर यह साबित किया है कि वे राजनीतिक दांव-पेच में माहिर हैं, और आतिशी को यह जिम्मेदारी सौंपकर उन्होंने एक बार फिर अपनी सूझबूझ का परिचय दिया है। आतिशी को मुख्यमंत्री पद पर बैठाने के पीछे कई कारण हैं, जिनमें सबसे प्रमुख यह है कि वह एक महिला हैं और पार्टी के प्रति वफादार भी।

मैं आतिशी ईश्वर की शपथ लेती हूं………..के साथ ही आतिशी दिल्ली की 8वीं और तीसरी महिला मुख्यमंत्री बन गईं। पार्टी ने बहुत सोच समझकर उन्हें ये पद सौंपा है। महिला हैं, विश्वास पात्र हैं और पार्टी के प्रति पूर्ण वफादार भी हैं, इसलिए, वरना अरविंद केजीवाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और झारखंड़ के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जैसा जाखिम जानबूझकर नहीं उठाते। उन दोनों ने भी कभी अपनी जगह जीतनराम मांझी और चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी, जिन्होंने कुछ महीनों में ही आंखें दिखानी शुरू कर दिया थी। खैर, केजरीवाल भी इस कड़ी में शामिल होते, उसके लिए उन्होंने गंभीरता से होमवर्क करके ही अपनी सीट पर आतिशी को बैठाने का निर्णय लिया। फिलहाल दिल्ली की स्थिति बिहार-झारखंड जैसी नहीं हैं। क्योंकि दिल्ली में अगले चार-पांच महीनों के भीतर ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। अब से कुछ समय बाद ही आचार संहिता लग जानी है।
पार्टी कार्यकर्ता आतिशी की ताजपोशी को बेशक ‘आतिशी पारी’ कह रहे हों, पर चुनौतियों की भी कोई कमी नहीं है? सभी भली भांति जानते हैं कि नई मुख्यमंत्री के लिए करने को कुछ ज्यादा नहीं है। सिर्फ नाम भर की मुख्यमंत्री रहेंगी। ये भी सच हैं कि कुर्सी पर बेशक आतिशी बैठें, लेकिन चलाएंगे केजरीवाल ही? सरकार संचालन का रिमोट केजरीवाल के पास ही सदैव होगा। बहरहाल, अरविंद केजरीवाल अभी कोर्ट-कचहरी और कानूनी पचेड़े में बुरी तरह से फंसे हुए हैं। आतिशी को दिल्ली की कमान सौंपने के पीछे एक वजह ये भी है कि वो महिला हैं इसलिए विपक्ष खासकर भाजपा खुलकर हमलावर नहीं होगी। पार्टी नेताओं की माने तो आतिशी को चुनाव तक के लिए जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस बीच वो गड़बडाई पार्टी की स्थिति को कितना संभाल पाती हैं, ये उनके सामने कड़ी परीक्षा जैसी रहेगी।

फिलहाल राज निवास में आयोजित एक समारोह में शनिवार को उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने उनको मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी है। दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उन्होंने भारत की 17वीं महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव भी हासिल कर लिया। समारोह में मौजूद रहे विपक्षी नेता बिजेंद्र गुप्ता, भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने भी उन्हें मुख्यमंत्री बनने की बधाइयां दी। दिल्ली के कालकाजी से विधायक आतिशी ने शपथ लेने के बाद अरविंद केजरीवाल के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। आतिशी आम आदमी पार्टी के कोटे से चौथी मुख्यमंत्री बनी हैं, उनसे पूर्व 3 मर्तबा पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल खुद मुख्यमंत्री रहे हैं। आतिशी के जगह अगर कोई पुरुष नेता मुख्यमंत्री बनता, तो भाजपा हमलावर होती। इसलिए केजरीवाल ने महिला को सीएम की कुर्सी सौंपकर बड़ा सियासी दांव खेला है।

मुख्यमंत्री आतिशी के समक्ष चुनौतियां बेशक हजार हो, लेकिन पार्टी उनके पीछे खड़ी है। पार्टी उन्हें चुनाव तक धुंआधांर पारी खेलने का मौका देगी। क्योंकि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी की वापसी भी करवानी है। मीडिया और सार्वजनिक रूप से सबसे बड़ा सवाल यही है चारो ओर गूंज रहा है कि क्या अगले वर्ष होने वाले चुनाव तक मुख्यमंत्री आतिशी पार्टी की वापसी करवा पाएंगी या नहीं? दिल्ली के सरकारी कामकाज काफी हद तक रुके हुए हैं। उन्हें दोबारा से संचालित करना होगा। पार्टी के कई नेता नाराज होकर दूसरे दलों में चले गए हैं और कोई न जाए, उन्हें रोकना होगा। रूठे नेताओं को मनाना होगा। एमसीडी जोन चुनाव में पार्टी भाजपा से पिछड़ चुकी है, दोबारा से पटरी पर लाना होगा। ऐसे कई मुद्दे नई मुख्यमंत्री के सामने मुंह खोले खड़े हैं। उन सभी को उन्हें पार पाना होगा। कुछ कठोर निर्णय भी लेने पड़ सकते हैं। अगले सप्ताह विधानसभा का सत्र भी बुलाया गया ।दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य महका भी चरमरा गया है, जबकि ये ऐसे महकमें है जिनके बूत उनकी पार्टी प्रचार करती है।शिक्षा में क्रांति लाने वाले मनीष सिसोदिया भी मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं है।

दिल्ली में पूर्व के मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल पर अगर नजर डाले, तो कईयों का बहुत अच्छा इतिहास और शानदार कार्यकाल रहा। एकाध मुख्यमंत्रियों ने तो लंबे समय तक राजधानी पर राज किया। पहले मुख्यमंत्री थे ब्रह्म प्रकाश, जो 17 मार्च 1952 से लेकर 12 फरवरी 1955 तक दिल्ली के मुखिया रहे। दूसरे, नंबर पर गुरमुख निहाल सिंह रहे जिनका कार्यकाल 12 फरवरी 1955 से लेकर 1 नवंबर 1956 तक रहा। तीसरे, मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना हुए उन्होंने 2 दिसंबर 1993 से लेकर 26 फरवरी 1996 तक दिल्ली की कमान संभाली। चौथे मुख्यमंत्री की बात करें, तो साहिब सिंह वर्मा थे जिन्होंने 26 फरवरी 1996 से लेकर 12 अक्टूबर 1998 तक दिल्ली को मुख्यमंत्री के तौर पर संभाला। वहीं, पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज थी जिनका कार्यकाल कम अवधि का था, वह मात्र 12 अक्टूबर 1998 से 3 दिसंबर 1998 तक ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहीं।

वहीं, दूसरी महिला मुख्यमंत्री के रूप में शीला दीक्षित ने लंबा कार्यकाल बिताया उन्होंने 3 दिसंबर 1998 से लेकर 1 दिसंबर 2003, 2 दिसंबर 2003 से 29 नवंबर 2008 तक और फिर 30 नवंबर 2008 से 28 दिसंबर 2013 तक दिल्ली की सेवा की। उनका कार्यकाल कई मायनों में यादगार रहेगा। सफल कॉमनवेल्थ गेम्स से लेकर मेट्रो के आगमन का श्रेय उन्हीं ही दिल्लीवासी देते हैं। इन सभी के बाद फिर आम आदमी पार्टी का आगाज हुआ, नई आम आदमी पार्टी वजूद में आई उनके संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 28 दिसंबर 2013 से लेकर 14 फरवरी 2014 तक, फिर 14 फरवरी 2015 से लेकर 15 फरवरी 2020 और फिर 16 फरवरी 2020 से लेकर 21 सितंबर 2024 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। अब आतिशी की पारी का आगाज हुआ है। दिल्लीवासियों को उनसे भी बहुत उम्मीदें हैं, देखते वह कितना खरा उतर पाती हैं।

दिल्ली की राजनीति में आतिशी का प्रवेश:
दिल्ली की राजनीति में आतिशी का आगमन कोई साधारण घटना नहीं है। यह एक ऐसे समय पर हो रहा है, जब पार्टी कई चुनौतियों का सामना कर रही है। आतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने एक ओर विपक्ष के हमलों से बचाव किया है, तो दूसरी ओर पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता में एक नया उत्साह भी भरने का प्रयास किया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आतिशी इन सभी चुनौतियों से कैसे निपटती हैं और पार्टी को विधानसभा चुनावों में वापसी करवाने की कितनी क्षमता रखती हैं।

आतिशी की ताजपोशी को लेकर पार्टी कार्यकर्ता इसे एक ‘आतिशी पारी’ के रूप में देख रहे हैं, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उनके सामने चुनौतियों का अंबार है। सबसे पहली चुनौती तो यह है कि उनके पास करने को ज्यादा कुछ नहीं है। मुख्यमंत्री पद का भार उन पर है, लेकिन सरकार चलाने की बागडोर अभी भी अरविंद केजरीवाल के हाथों में ही रहेगी। सरकार का संचालन केजरीवाल ही करेंगे, जबकि आतिशी केवल एक औपचारिक मुखिया की तरह दिखेंगी।

आतिशी के सामने बड़ी चुनौतियां:
वर्तमान समय में अरविंद केजरीवाल कोर्ट-कचहरी और कानूनी पचड़ों में बुरी तरह उलझे हुए हैं, और ऐसे में आतिशी को दिल्ली की कमान सौंपना एक रणनीतिक कदम माना जा सकता है। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि आतिशी एक महिला हैं और पार्टी को विश्वास है कि विपक्ष, खासकर भाजपा, खुलकर उन पर हमलावर नहीं होगी। आतिशी को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक चुनाव तक के लिए बैठाया गया है, और इस अवधि में उन्हें पार्टी की स्थिति को सुधारने और जनता के बीच पार्टी की छवि को बेहतर करने की कोशिश करनी होगी।

हालांकि, आतिशी की जिम्मेदारी केवल नाम भर की मुख्यमंत्री बनने की नहीं है। उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं। दिल्ली में सरकारी कामकाज लगभग रुके हुए हैं, जिन्हें दोबारा शुरू करवाना होगा। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनावों में पार्टी भाजपा से पिछड़ चुकी है, और अब पार्टी को दोबारा से पटरी पर लाना आतिशी के लिए एक कठिन परीक्षा साबित हो सकती है। इसके साथ ही, पार्टी के भीतर भी कई नेता नाराज चल रहे हैं, जिनमें से कई ने दूसरे दलों का दामन थाम लिया है। इन नेताओं को मनाने और पार्टी में एकजुटता बनाए रखने का जिम्मा भी आतिशी पर होगा।

पार्टी के भीतर चुनौतियां और नाराज नेता:
आतिशी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वे पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को कैसे संभालती हैं। दिल्ली में पार्टी के कई वरिष्ठ नेता अब दूसरे दलों में जा चुके हैं। यह एक बड़ा झटका है, क्योंकि ऐसे नेता पार्टी के आधारभूत ढांचे का हिस्सा थे और उनका जाना पार्टी के लिए नुकसानदायक हो सकता है। अब यह देखना होगा कि आतिशी कैसे इन नेताओं को दोबारा पार्टी में वापस लाने का प्रयास करती हैं और जो नेता पार्टी छोड़ने की सोच रहे हैं, उन्हें कैसे रोक पाती हैं।

इसके अलावा, पार्टी की स्थिति चुनावी मोर्चे पर भी कमजोर हो चुकी है। दिल्ली के नगर निगम चुनावों में आम आदमी पार्टी को भाजपा से पीछे रहना पड़ा था, और यह स्थिति पार्टी के लिए खतरे का संकेत हो सकती है। आतिशी को इस स्थिति से निपटना होगा और चुनाव से पहले पार्टी को दोबारा मजबूती से खड़ा करना होगा।

एमसीडी चुनाव में पिछड़ना:
एमसीडी चुनावों में पिछड़ना पार्टी के लिए एक बड़ा धक्का था। यह चुनावी हार बताती है कि पार्टी की स्थिति अब पहले जैसी मजबूत नहीं है। भाजपा की पकड़ एमसीडी पर पहले से ही मजबूत थी, और पार्टी को इसे तोड़ने में सफलता नहीं मिली। अब आतिशी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वह इस स्थिति को कैसे सुधारती हैं।

दिल्ली की जनता की उम्मीदें भी आतिशी से काफी बड़ी हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो क्रांतिकारी परिवर्तन मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में हुए थे, अब उन्हें दोबारा से बेहतर ढंग से लागू करना होगा। मनीष सिसोदिया की गैरमौजूदगी में आतिशी को इन विभागों की कमान संभालनी होगी, और यह किसी चुनौती से कम नहीं होगा। शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग आम आदमी पार्टी की पहचान हैं, और अगर इन क्षेत्रों में सुधार नहीं होता है, तो पार्टी के लिए विधानसभा चुनावों में मुश्किल हो सकती है।

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्रियों का ऐतिहासिक कार्यकाल:
दिल्ली के राजनीतिक इतिहास में अगर नजर डालें, तो कई मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल बेहद प्रभावशाली रहा है। पहले मुख्यमंत्री ब्रह्म प्रकाश से लेकर शीला दीक्षित तक, कई नेताओं ने दिल्ली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शीला दीक्षित का कार्यकाल तो खासतौर पर यादगार रहा है, जहां उनके नेतृत्व में दिल्ली ने मेट्रो जैसी सुविधाओं का विकास देखा और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसी बड़ी सफलताओं का हिस्सा बनी। उनके बाद अरविंद केजरीवाल ने भी अपने कार्यकाल में दिल्ली को नई दिशा दी, लेकिन अब आतिशी को यह साबित करना होगा कि वह भी उन्हीं की तरह एक सफल मुख्यमंत्री बन सकती हैं।

ब्रह्म प्रकाश से लेकर अरविंद केजरीवाल तक, दिल्ली के सभी मुख्यमंत्रियों का अपना एक अलग इतिहास रहा है। ब्रह्म प्रकाश ने 1952 से लेकर 1955 तक दिल्ली की कमान संभाली थी, जबकि शीला दीक्षित ने 15 वर्षों तक दिल्ली की सेवा की। उनके कार्यकाल को मेट्रो और दिल्ली के विकास की नींव रखने के लिए याद किया जाता है। इसी तरह अरविंद केजरीवाल ने भी कई बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, और उनके नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की राजनीति में बड़ा बदलाव लाया।

अब आतिशी को यह साबित करना होगा कि वह भी एक प्रभावशाली मुख्यमंत्री बन सकती हैं। उनके सामने चुनौतियां तो बहुत हैं, लेकिन अगर वह इन चुनौतियों का सामना कर पाईं, तो उनका कार्यकाल भी दिल्ली के राजनीतिक इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जा सकता है।

आतिशी की परीक्षा:
आतिशी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वह दिल्ली की जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरती हैं। चुनाव नजदीक हैं, और उनके पास बहुत समय नहीं है। उन्हें जल्द से जल्द ठोस फैसले लेने होंगे और पार्टी को मजबूत स्थिति में लाना होगा। पार्टी के नेताओं को भी एकजुट करना होगा और जनता के बीच यह संदेश देना होगा कि पार्टी अब भी जनता की भलाई के लिए काम कर रही है।

आतिशी की यह पारी निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण है, लेकिन अगर वह इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर पाईं, तो उनका नाम दिल्ली की राजनीति में हमेशा के लिए दर्ज हो जाएगा।

आखिरी शब्द:
दिल्ली की राजनीति में आतिशी का आगमन एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। उनके सामने चुनौतियां बहुत हैं, लेकिन उनके पास पार्टी का समर्थन भी है। अगर वह सही दिशा में कदम उठाती हैं और दिल्ली की जनता को यह विश्वास दिला पाती हैं कि पार्टी अभी भी उनके हितों के लिए काम कर रही है, तो वह न केवल एक सफल मुख्यमंत्री बनेंगी, बल्कि पार्टी को भी चुनावों में बड़ी जीत दिला सकती हैं।

अब यह देखना होगा कि आतिशी की यह ‘आतिशी पारी’ कितनी धुआंधार साबित होती है और क्या वह दिल्ली की राजनीति में एक नई छाप छोड़ने में सफल हो पाती हैं।

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